संघर्ष संजीवता का जीवंत प्रमाण है। संगठित संघर्ष समाज में चेतना उसके संरक्षण के साथ-साथ उत्तरोत्तर प्रगति के लिये परम आवश्यक है, कुछ इसी अवधारणा के आधार पर भारतवर्श में Þसंघ शकित कलयुगेß जैसे सुकित वाक्य की खोज हुर्इ। राष्ट्र की स्वतंत्रता की बात हो या उन्नति की संगठित संघर्ष ही इसका मूल रहा है। सृषिट की रचना से वर्तमान तक संगठित समुदाय तो अपना संरक्षण करने में सफल हुए परन्तु एकांगी समय की गर्त में समा गये। कुछ तो शोध का विषय बन गये परन्तु शायद बहुतों को शोध कर्ताओं की प्रतीक्षा है। व्यकित से परिवार,परिवारों से समुदाय समुदायों से समाज बनता है। परन्तु इन सभी संरचनाओं में यदि संगठित विचारधारा को हटा दिया जायेेतो कहीं कुछ नहीं रह जाता। अर्थात व्यकित फिर अकेला रह जाता है। इससे यह सिद्ध होता हैे कि यदि हम संगठित हैं तो सब कुछ है अन्यथा कुछ भी नहीं। विचारों में समत्व,रिश्ते में बन्धुत्व, परायी पीर की समझ, नियमों से आबद्ध स्वभाव से सरल,इरादों में दृढ़ता-मृदुभाषी परन्तु अन्याय एवं उत्पीड़न के विरूद्ध अनुशासित सिपाही की भाति निर्भीक होकर सामना करना ही संगठन का सच्चा अर्थ हैं।
 
कहा जाता है कि वर्ष 1967 तक तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियंत्रण विभाग में किसी भी अधिकारी अथवा कर्मचारी संवर्ग में कोर्इ संघ अथवा संगठन नहीं हुआ करता था । विभाग के इतिहास में इसी सर्वप्रथम कार्यरत डिप्लोमा इंजीनियर्स जिन्हें ततसमय आंवरसियर के पदनाम से सम्बोधित किया जाता था, ने लखनऊ सिथत सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीटयूट के सभागार में प्रथम अधिवेशन आहूत किया । उनका यह कृत विभाग के समस्त अधिकारियों व कर्मचारियों के लिये कौतूहल का विषय बना था । मात्र पच्चास- साठ डिप्लोमा इंजीनियर्स की उपसिथति में इं0 महताब चन्द्र जैन को अध्यक्ष तथा इं0 सै0 गजनफर अली को महामंत्री निर्वाचित घोषित किया गया । तत्कालीन मुख्य अभियन्ता इं0 ए0 के0 राय की प्रतीक्षा कुछ को इस बात पर आतुर कर रही थी कि क्या विभाग का मुखिया सदन में आयेगा और यदि वह यहा आ ही गया तो सहभागिता करने वालों पर कहीं इसका कोर्इ बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा । कुछ देर में सारे प्रश्नों पर विराम लगाते हुए मुख्य अभियन्ता महोदय सभागार में उपसिथत हुए । उनकी सहभागिता को देखते हुए विभाग के अन्य आठ-दस आला अफसर भी सभागार में उपसिथत हुए। मुख्य अभियन्ता महोदय ने इस प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा के साथ-साथ समस्याओं के निस्तारण का आश्वासन भी सदन को दिया गया । हालांकि न तो इस अधिवेशन का कोर्इ साक्ष्य कार्यालय में है और न ही अग्रेतर वर्षो में इसके पुर्नगठन का । परन्तु इस ऐतिहासिक क्षणों के भागीदार कुछ सदस्य जो वर्तमान में जल निगम के पेंशन भोगी कर्मी हैं के मुखार विन्दु से इस सुनहरे इतिहास का वर्णन सुनने को मिलता है। वर्णन करते समय उनके आभा मंडल में गर्व की छाप उनके बृद्ध चेहरे को कान्तीमान बना देता है जो हमारी प्रेरणा के लिये पुष्ट आधार प्रदान करती है।
माह मर्इ 1972 में उ0 प्र0 डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ का वार्षिक अधिवेशन तिलक हाल महापालिका भवन लालबाग लखनऊ में सम्पन्न हुआ । इस सभा में भाग लेने वाले तत्कालीन स्वा0 शासन अभियंत्रण विभाग के कुछ सदस्यों ने एकत्र होकर विभाग में कार्यरत अवर अभियन्ताओं का संगठन बनाने पर विचार किया। माह जून 1972 में कैसर बाग बारादरी लखनऊ में संगठन की कार्यकारिणी का निर्वाचन हुआ, इसमें इं0 एस0 डी0 व्यास- अध्यक्ष, इं0 बी0 पी0 सिंघल उपाध्यक्ष,इं0 हरीश चन्द्र पाण्डेय, महामंत्री, इं0 एस0 पी0 खण्डेलवाल कोषाध्यक्ष तथा इं0 सी0 बी0 प्रकाश सम्परीक्षक निर्वाचित घोषित हुए ।
इस संगठन का नाम अगगेजी में ßजूनियर इंजीनियर्स एसोसिएशनÞ तथा हिन्दी में ßकनिष्ठ अभियन्ता संघÞ रखा गया। दिनांक 2.03.1974 को इसका पंजीकरण रजिस्टार सोसाइटीज,चिट फन्ड से कराया गया ।
वर्ष 1974 में उत्तर प्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ के नतृत्व में प्रदेश में कार्यरत समस्त डिप्लोमा इंजीनियर्स के सम्मान की रक्षार्थ दिनांक 10 जनवरी 1974 से 4 अप्रैल 1974 तक ( 85 दिनों ) की एैतिहासिक हड़ताल हुर्इ। इस हड़ताल में कनिष्ठ अभियन्ता संघ के दिशा निर्देशन में स्वा0 शासन अभियंत्रण विभाग के अवर अभियन्ताओं ने अगि्रम पकित में अपना स्थान सुनिशिचत किया । हमारे कर्इ अग्रजों को इस हेतु जेल यात्रा की ़त्रासदी झेलनी पड़ी । संवर्ग के प्रति उत्सर्ग का वीरता पूर्वक प्रदर्शन करने वाले कुछ उत्साही साथियों का विवरण निम्नानुसार है।
  1. इं0 महेन्द्र सिंह शर्मा,
  2. इं0 राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी,
  3. इं0 जग प्रसाद मिश्र,
  4. इं0 पी0 एस0 खेड़ा (स्वर्गवास)
  5. इं0 सत्यब्रत सिंह,
  6. इं0 मुनीश चन्द्र पाण्डेय,
  7. इं0 अरूण कुमार गुप्ता,
  8. इं0 दयाराम वर्मा,
  9. इं0 अमर सिंह राठौर,
  10. इं0 पी0 एन0 मिश्रा,
  11. इं. बुद्ध सिंह जैन,
  12. इं0 मनोहर सिंह बघेल।

दिनांक 25 जून 1975 को स्वा0 शासन अभियंत्रण विभाग ßउत्तर प्रदेश जल निगमÞ के नाम से परिवर्तित कर दिया गया । परिणाम स्वरूप संगठन का नाम भी ßडिप्लोमा इंजीनियर्स संगठन उत्तर प्रदेश जल निगमÞ रखते हुए इसका प्रथम अधिवेशन दिनांक 5 व 6 जून 1978 को स्थानीय मोतीमहल सभागार में सम्पन्न हुआ । नये नाम से इसका पंजीकरण पुनरीक्षण कराया गया । बताया जाता है कि प्रथम सत्र में वर्ष 1974 के मध्य संगठन का सम्पूर्ण भार इं0 हरीश चन्द्र पाण्डेय तत्कालीन महामंत्री ने अपने कन्धों पर वहन किया, स्थान था उनके कन्धों पर लटका हुआ झोला । उनका यह योगदान संगठन के प्रत्येक सदस्य के लिये प्रेरणा तथा स्वयं उनको परम आदरणीय स्तर प्रदान करता है।
प्रथम अधिवेशन में उत्साही डिप्लोमा इंजीनियर्स ने नेतृत्व की बागडोर अध्यक्ष के रूप में इं0 एस0 पी0 गौड़ तथा महामंत्री के रूप में इं0 ओम कुमार शर्मा को सौपी । जहा इं0 गौड़ ने एक मझे हुए नेतृत्व कर्ता के रूप में अपना परिचय प्रस्तुत किया वहीं इं0 शर्मा की हसमुख व मिलनसार प्रवृतित सदस्यों के अन्र्तमन में समा गर्इ। द्वितीय सत्र में निम्नलिखित उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की ।
  1. तदर्थ सहायक अभियन्ताओं का नियमितीकरण व पदोन्नति ।
  2. मोटर सार्इकिल भत्ता 75- प्रतिमाह।
  3. अवर अभियन्ताओं का नियमितीकरण,स्थयीकरण तथा पदोन्नति ।
  4. प्रकल्प शाखाओं हेतु प्रकल्प भत्ता 40- प्रतिमाह ।
  5. सलैक्शन ग्रेड तथा अन्र्ह अवर अभियन्ताओं को अर्ह वेतनमान ।
संगठन का दूसरा अधिवेशन दिनांक 22 व 23 जून 1979 को मोती महल प्रांगण सिथत सभागार में सम्पन्न हुआ । संगठन के अध्यक्ष बने इं0 एस0 पी0 गौड़ एवं महामंत्री इं0 राज कुमार शर्मा । इस सत्र में संगठन ने प्रथम बार लगातार आठ दिन का धरना कार्यक्रम मुख्यालय प्रांगण में करते हुए अपनी शकित और संघर्ष क्षमता का परिचय प्रशासन को दिया । सत्र पर्यन्त निम्नलिखित समस्याओं का निस्तारण करवाया गया ।
1. अवर अभियन्ताअें के नियमितीकरण, स्थायीकरण तथा सलैक्शन ग्रेड ।
2. अवर अभियन्ता से सहायक अभियन्ता पद पर पदोन्नति तथा पदोन्नत सहायक अभियन्ता की अधिशासी अभियन्ता संवर्ग में पदोन्नति ।
3. वाहन भत्ता तथा दक्षता रोक स्वीकृति के अधिकारों का विकेन्द्रीकरण ।
4. पदोन्नति कोटा 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत ।
5. लोक सेवा आयोग के माध्यम से अन्य विभागों से आए अवर अभियन्ताओं को सेवा लाभ।
दिनांक 26 एवं 27 सितम्बर 1980 को संगठन का तृतीय वार्षिक अधिवेशन मोती महल प्रांगण सिथत सभागार में सम्पन्न हुआ । इं0 एस0 पी0 गौड़ ने लगातार तीसरी बार अध्यक्ष पद प्राप्त कर अपनी नतृत्व क्षमता व लोकप्रियता का परिचय प्रस्तुत किया । संगठन के महामंत्री बने इं0 चाद नारायण कपूर । सत्र के दौरान